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अपराधियों पर भारी पड़े योगी सरकार के 4.5 साल, 8472 एनकाउंटर, 146 बदमाश ढेर

लखनऊ। उत्तर प्रदेश (Uttar pradesh) की योगी सरकार (yogi government) के कार्यालय को साढ़े चार साल हो गए है. वहीं इन बीते 4.5 सालों में हुई मुठभेड़ों (Encounters) में 3000 से अधिक बदमाश (crooks), जो पुलिस की गोली का शिकार हुए और अब चलने फिरने लायक नहीं बचे हैं.

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वहीं 146 बदमाश पुलिस की गोली खाने के बाद दम तोड़ चुके हैं. लेकिन यूपी में एनकाउंटर के इन आंकड़ों पर अब राजनीति गरमा रही है. सत्ताधारी बीजेपी इसे योगी सरकार के सुशासन का नतीजा बता रही है, तो वहीं विपक्षी दल इसे पुलिस के दम पर तानाशाही करार दे रहे हैं.

11 अगस्त- झांसी में ट्रांसफार्मर का तेल और बिजली तार चोरी करने वाले बदमाश से पुलिस की मुठभेड़ हुई. इस दौरान पुलिस ने एक बदमाश गिटार को गोली मार दी.

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10 अगस्त- बिजनौर के कोतवाली क्षेत्र में निजी फाइनेंस कंपनी में लूट करने वाले दो शातिर बदमाशों से पुलिस की मुठभेड़ हुई. लुटेरों ने पुलिस पर गोली चलाई तो आत्मरक्षा में पुलिस ने फायरिंग की और दोनों बदमाशों के पैर में गोली जा लगी. इस मुठभेड़ में बिजनौर पुलिस का एक सिपाही भी बदमाशों की गोली से घायल हो गया.

09 अगस्त- बस्ती के कोतवाली क्षेत्र में शातिर वाहन चोर से पुलिस की मुठभेड़ हो गई. इस दौरान वाहन चोर पुलिस की गोली का शिकार हो गया. गोली वाहन चोर के पैर में लगी.

09 अगस्त- आजमगढ़ के बरदाहा थाना क्षेत्र में शातिर लुटेरे से पुलिस की मुठभेड़ हुई. पुलिस की गोली शातिर लुटेरे के पैर में जाकर लगी.

4 पशु तस्करों में से एक बदमाश को गोली लगी

इसी तरह से जौनपुर के खेता सराय में पुलिस की मुठभेड़ पशु तस्करों से हो गई. 4 पशु तस्करों में से एक बदमाश को गोली लगी और वो घायल हो गया.

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बीते 1 सप्ताह में हुई ये घटनाएं बता रही हैं कि पुलिस के साथ बदमाशों की मुठभेड़ में इजाफा हुआ है. वहीं दूसरी तरफ पुलिस की गोली बदमाशों के पैर में ज्यादा लग रही है. यानी उत्तर प्रदेश पुलिस की गोली से बदमाश घायल ज्यादा हो रहे हैं.

सत्ता में आते ही सीएम योगी ने बदमाशों को किया था आगाह

मार्च 2017 में उत्तर प्रदेश में बीजेपी सरकार आई तो सत्ता संभालते ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ऐलान किया कि बदमाश पुलिस पर गोली चलाएगा तो अब पुलिस भी बदमाश की गोली का जवाब गोली से देगी.

जिसका नतीजा ये हुआ उत्तर प्रदेश में गाजियाबाद से लेकर गाजीपुर तक लखनऊ से लेकर ललितपुर तक, पुलिस ने एनकाउंटर किए. इतने किए कि अब ये आम बात हो गई.

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मार्च 2017 के बाद पुलिस और बदमाशों के बीच मुठभेड़ की घटनाएं बढ़ी हैं. मार्च 2017 से जुलाई 2021 तक पुलिस और बदमाशों के बीच 8472 मुठभेड़ हुई हैं. जिसमे 146 बदमाश मारे गए.

3302 बदमाश पुलिस की गोली का शिकार होकर घायल हुए

लेकिन 3302 बदमाश पुलिस की गोली का शिकार होकर घायल हो गए. बदमाशों के साथ मुठभेड़ में 13 पुलिसकर्मी शहीद हुए. जबकि 1157 पुलिसवाले घायल हुए.

मेरठ जोन में सबसे ज्यादा 2839 मुठभेड़ हुई

अगर ज़ोन के आंकड़ों की बात करें तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ जोन में सबसे ज्यादा 2839 मुठभेड़ हुई. जिनमें 1547 बदमाश घायल हुए. 61 बदमाश मारे गए.

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आगरा ज़ोन में 1884 एनकाउंटर हुए तो 218 बदमाश पुलिस की गोली से घायल हुए. 18 अपराधी मारे गए. इसके साथ ही बरेली जोन में 1173 एनकाउंटर हुए. जिनमें 299 बदमाश घायल हुए. 7 मारे गए और 2642 बदमाश गिरफ्तार किए गए.

एनकाउंटर पर सियासत

पुलिस और बदमाशों के बीच हुई मुठभेड़ों पर अब राजनीति भी तेज हो गई है. यूपी बीजेपी ने बीते 3 अगस्त को अपने ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया. यह डर अच्छा है. यह नया उत्तर प्रदेश है. जीतेगा विकास जीतेगा यूपी.

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बीजेपी प्रवक्ता मनीष शुक्ला कहते हैं कि, उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार क्राइम फ्री और करप्शन फ्री के वादे के साथ आई थी और पहले ही दिन से योगी आदित्यनाथ की सरकार इस दिशा में काम कर रही है. अपराधियों और माफियाओं के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई हो रही है. उनके आर्थिक साम्राज्य को भी समाप्त किया जा रहा है.

आज भी सवालों के घेरे में पुलिस

वहीं दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी आरोप लगा रही है कि, उत्तर प्रदेश सरकार बदमाशों के साथ-साथ निर्दोषों का भी एनकाउंटर रही है. आम जनमानस में भय व्याप्त है. वो पुलिस जो आम जनता की रक्षा कवच है. वहीं पुलिस आज सवालों के घेरे में है.

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सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी यूपी सरकार को सबसे ज्यादा फेक एनकाउंटर और कस्टोडियल डेथ के लिए नोटिस जारी किया है. प्रदेश की जनता को कानून व्यवस्था के नाम पर सरकार और पुलिस डराना चाहती है.

इन जिलों में फेक एनकाउंटर हुए

आजमगढ़, बागपत और अलीगढ़ में फेक एनकाउंटर हुए हैं, उनके मां-बाप गुहार लगाते रहे लेकिन उनकी कहीं सुनवाई नहीं हुई.

पूर्व डीजीपी ने भी उठाया सवाल

पुलिस एनकाउंटर के इस आंकड़े पर पूर्व डीजीपी एल बनर्जी भी सवाल खड़े करते हैं. उनका कहना है कि, गिरफ्तारियां तो हरदम होती आई हैं. लेकिन इतनी बड़ी संख्या में अपराधियों को गोली लगने का मतलब या तो पुलिस ज्यादा क्रियाशील है. या पहले से ज्यादा बेहतर निशानेबाज हो गई है.

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या फिर ज्यादा संख्या में बदमाश पुलिस पर गोली चला रहे हैं. पुलिस किसी पर तभी गोली चलाती है, जब उस पर कोई गोली चलाए. अगर गोली चलती ही है तो केवल पैरों पर ही गोली क्यों लगती है शरीर के अन्य अंग भी तो हैं, जहां पर गोली लग सकती है.

इसको गहनता से देखा जाए तो लगता है कि यह प्रायोजित तौर पर गोली मारी जा रही है. हिंदुस्तान में कोई दूसरा प्रदेश नहीं है, जहां इतनी संख्या में गिरफ्तारी के दौरान केवल पैरों में गोली लगी हो.

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