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कर्नाटक की राजनीति में क्या हैं लिंगायत समुदाय के मायने ?

कर्नाटक की राजनीति में क्या हैं लिंगायत समुदाय के मायने ? अगर कर्नाटक की राजनीति की बात करें तो जिन दो जातियों के समुदाय का दबदबा माना जाता है वो हैं लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय है। खासतौर पर लिंगायत समुदाय जिसकी आबादी राज्य में लगभग 17 प्रतिशत तक है। कहा जाता है कि लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय के लोग जिस भी पार्टी से जुड़ जाते हैं उसका पासा पलटना तय है। लिंगायत समाज को राज्य में अगड़ी जातियों में गिना जाता है।

लिंगायत समुदाय से बने कितने ?

साल 1956 में भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन हुआ। इसके बाद कन्नड़ भाषा वाला राज्य मैसूर अस्तित्व में आया। बाद में चलकर इसका नाम कर्नाटक पड़ा। राज्य गठन के समय से ही यहां पर लिंगायत समुदाय का दबदबा रहा। राज्य में अब तक 8 मुख्यमंत्री लिंगायत समुदाय से बने हैं। राज्य की लगभग 110 सीटों पर ये समुदाय सीधा असर डालता है। कर्नाटक के अलावा इसके पड़ोसी राज्यों महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी इस समुदाय की पैठ है। मौजूदा मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई भी लिंगायत समुदाय से ही आते हैं।

कर्नाटक की राजनीति में लिंगायत समुदाय का प्रभाव

लिंगायत समुदाय का कितना प्रभाव है इस समाज के विधायकों की संख्या से अंदाजा लगा सकते हैं। अगर पिछले चुनाव यानी साल 2018 की बात करें, तो इस समुदाय से कुल 58 विधायक लिंगायत समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जिसमें 38 तो अकेले बीजेपी की टिकट पर ही जीते हैं। वहीं 16 विधायकों ने कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की और चार जेडीएस से विधायक बने।

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