पवित्र माह सावन में भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व है। बाबा काशी विश्वनाथ के दर्शन के लिए पूरी दुनिया से लोग पहुंचते हैं। काशी से ही सटे सोनभद्र जिले में भी भगवान शिव का ऐसा मंदिर है, जहां शिवलिंग की नहीं, साक्षात शिव-पार्वती की पूजा होती है। पूरे सावन यहां दर्शनार्थियों का रेला लगा रहता है।
काले पत्थर से निर्मित प्रतिमा करीब तीन फीट ऊंची और लश्या शैली में है। इसे सृजन का स्वरूप भी माना जाता है। यह प्रतिमा खेत में हल चलाने के दौरान जमीन में मिली थी। जिला मुख्यालय से 39 मिमी किलोमीटर दूर शिवद्वार मंदिर में स्थापित उमा-महेश्वर की प्रतिमा अत्यंत दुर्लभ है। शिव-पार्वती की ऐसी अनूठी प्रतिमा अन्यत्र नहीं होने का दावा है।
इसकी प्राचीनता 11वीं सदी की है। यह मंदिर उस काल के शिल्प कौशल के बेहतरीन नमूने और शानदार कला का प्रदर्शन करता है। इस क्षेत्र के निवासी इस मंदिर को धार्मिक महत्व के कारण दूसरी काशी व गुप्त काशी के रूप में मानते हैं।
शिवद्वार उमा-महेश्वर मंदिर में अन्य देवी-देवताओं की काले पत्थर की मूर्तियां भी रखी हुई हैं। यही कारण है कि यहां बड़ी तादाद में श्रद्धालु दर्शन-पूजन के लिए पहुंचते हैं। सावन के सोमवार को तो हजारों की भीड़ उमड़ती है।
देवों के देव कहलाने वाले महादेव के देश में कई ऐसे पावन धाम हैं, जहां पर सिर्फ दर्शन मात्र से ही शिव भक्तों के सारे दु:ख-दर्द दूर और मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। सोनभद्र के घोरावल तहसील मुख्यालय से 10 किमी दूरी पर स्थित सतवारी गांव में शिवद्वार मंदिर ऐतिहासिक महत्व वाला है।
अक्सर शिवालयों में शिवलिंग या भगवान शिव की प्रतिमा की पूजा होती है, लेकिन शिवद्वार में भगवान शिव के साथ उनकी पत्नी देवी पार्वती भी विराजमान हैं। दोनों की एक साथ यह प्रतिमा ही अपने आप में अलग है। स्थानीय लोगों के मुताबिक, सावन में दर्शन-पूजन से भगवान शिवशंकर भक्तों की मुरादें पूरी कर देते हैं।
किंवदंतियों के अनुसार खेत में हल जोतते समय यह दिव्य प्रतिमा मोती महतो को प्राप्त हुई थी। उसने वहां पर मंदिर बनवाकर मूर्तियों को स्थापित कराया। इतिहासकारों के मुताबिक यह प्रतिमा 11वीं सदी की है। यह मंदिर उस काल के शिल्प कौशल के बेहतरीन नमूने और शानदार कला का प्रदर्शन करता है।
प्रसिद्ध शिवद्वार धाम में कांवड़ यात्रा आरंभ वर्ष 1986 में में हुआ। उस समय घोरावल नगर के 13 युवकों द्वारा मिर्जापुर के बरियाघाट से गंगाजल लाकर कांवड़ यात्रा की शुरुआत की गई थी। वर्ष 1991 में सोनभद्र के विजयगढ़ दुर्ग से कांवड़ यात्रा प्रारंभ कराया गया था। आज हजारों कांवड़ियों के लिए शिवद्वार धाम आस्था का केंद्र बन चुका है। पूरे पूर्वांचल से शिवभक्त कांवड़ लेकर आते हैं।