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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के जीवन से जुड़ी कई घटनाएं जिसे सुनकर आंख में आंसू रुकेंगे नहीं

भारतीय संस्कृति और परंपराओं में महिलाओं को वरियता प्रदान की गई है.. भारत भूमि पर महिलाओं को देवी स्वरूप में पूजा जाता है। भारत में कई देवी देवताओं ने लीलाएं कर देश की आवाम का कल्याण किया है। वहीं भारतीय जनता पार्टी ने भारतीय संस्कृति में एक बड़ा ऐतिहास जोड़ दिया है। राष्ट्रपति पद पर देश की पहली आदिवासी महिला को नियुक्त किया और लंबे मतों से विजय हासिल की। भारत की पहली आदिवासी महिला जो जमींन से उठकर आज देश की सर्वोत्तम कमान को संभालने के लिए तैयार है।  

आदिवासी वर्ग से आने वाली द्रौपदी मुर्मू के कई आश्चर्य में डालने वाली घटनाएं है.। द्रौपदी मुर्मू से प्रेरणा लेने वाला कभी असफल नहीं हो सकता.. ऐसा इसीलिए कि राष्ट्र के प्रति सुदृढ़ सोच रखने वाली द्रौपदी ने अपने दो बेटे और पति को अपनी आंखो के सामने मरते देखा है। सब कुछ खोने के बाद एक पल के लिए द्रौपदी मुर्मू राजनीति से सन्यास लेने की घोषणा करने वाली थी.. लेकिन कुछ समर्थकों ने उनका हौसला बढाया। जिसका नतीजा आज हम सभी के सामने है।

21 जून, शाम 8.30 का वक्त रहा होगा। मैं अपनी दुकान पर था, तभी फोन की घंटी बजी। फोन उठाया, तो उधर से आवाज आई, PM साहेब द्रौपदी मैडम से बात करना चाहते हैं। मैं फौरन मैडम के घर के लिए निकल पड़ा। अभी 5 मिनट भी नहीं बीते थे कि दोबारा फोन आया। मैंने कहा- बस पहुंच ही रहा हूं। मैं समझ गया, कुछ ज्यादा अर्जेंट है। दौड़ते-भागते मैडम के घर दाखिल हुआ। तब वो अपने कमरे में सोने की तैयारी कर रही थीं।

मैंने मैडम को फोन देते हुए कहा- प्रधानमंत्री जी आपसे बात करना चाहते हैं। करीब एक मिनट बात हुई। मैडम खामोश थीं। उनकी आंखों से आंसू बह रहे थे। मैं और उनकी बेटी इतिश्री उन्हें संभाल रहे थे। जैसे-तैसे उन्होंने खुद को संभालने के बाद जो कहा वो इतिहास बन गया। वो कह रही थीं, ‘इतनी बड़ी खबर और मेरे अपने ही पास नहीं हैं।’

मयूरभंज के BJP जिलाध्यक्ष बिकास महतो जब ये बातें बता रहे थे, तब वे भी भावुक हो गए थे। बिकास उन्हीं रविंद्रनाथ महतो के बेटे हैं, जो द्रौपदी को अपनी जिद पर राजनीति में लाए, जिनका हाथ थामकर द्रौपदी पार्षद से देश के सर्वोच्च पद तक पहुंचीं।

बिकास बताते हैं, ‘आधे घंटे बाद दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनके नाम की घोषणा होने वाली थी। मुझे पता था कि जैसे ही घोषणा होगी, घर पर भीड़ लग जाएगी। मैडम भावविभोर थीं, उन्हें तैयार करना था, उस भीड़ से मिलने के लिए। किसी तरह हमने उन्हें आधे घंटे के बाद लगने वाली भीड़ और बधाइयों के लिए तैयार किया।

फोन सीधा मैडम को क्यों नहीं आया? बिकास कहते हैं, ‘उनके घर के भीतर सिग्नल में थोड़ी दिक्कत है। कभी-कभी फोन नहीं लगता। शायद उस दिन भी ऐसा ही हुआ हो। PMO में मेरा नंबर पहले से मौजूद था। गवर्नर रहते हुए मैडम के PA की तबीयत बिगड़ गई थी। तब मैं आखिरी के छह महीने जुलाई 2021 से लेकर दिसंबर तक उनका PA भी रहा। इसीलिए शायद मेरे पास PMO से फोन आया।

द्रौपदी के भाई तारीनी सेन टूडु, उनके टीचर बासुदेव बेहरा, परिचित और परिवार से हमने एक सवाल पूछा- क्या आपको लगता था कि द्रौपदी राष्ट्रपति बनेंगीं? बेहरा कहते हैं- भरोसा था कि वह मैट्रिक पास करेगी और टीचर बनेगी, लेकिन राष्ट्रपति बनेगी, ऐसा तो सपने में भी नहीं सोचा था। उनके भाई और दूसरे लोगों का भी कमोबेश कुछ ऐसा ही जवाब था। वह टीचर बनी भीं।

साल 1997 में रविंद्रनाथ महतो ने द्रौपदी के पति श्याम चरण मुर्मू से कहा, ‘रायरंगपुर के वार्ड-2 के काउंसलर पद का चुनाव द्रौपदी को लड़ना चाहिए। हम सब उनका साथ देंगे। तब रविंद्रनाथ BJP के जिलाध्यक्ष थे। वकालत भी करते थे और इलाके में उनका अच्छा-खासा नाम था।

मिडिल क्लास फैमिली का एक पति जैसे जवाब देता, बिल्कुल वैसा ही श्याम ने दिया, ‘यह राजनीति हमारे लिए नहीं। हम छोटे लोग हैं। औरतों के लिए तो बिल्कुल भी ठीक नहीं।’ लेकिन श्याम और द्रौपदी को राजी करने के लिए रविंद्रनाथ अड़े रहे। दोनों को मनाने के लिए अपने साथ कुछ और BJP कार्यकर्ताओं को भी ले गए।

बिकास कहते हैं, ‘काउंसलर की सीट एसटी के लिए आरक्षित थी। पार्टी की स्टेट लीडरशिप की तरफ से कहा गया कि किसी योग्य एसटी महिला की तलाश कीजिए। पिता जी मुर्मू मैडम से तब से परिचित थे, जब वह भुवनेश्वर के आदिवासी आवासीय विद्यालय में पढ़ने आईं थीं। उन दोनों का चाचा-भतीजी का रिश्ता बन गया था। तब मैडम रायरंगपुर में टीचर थीं और श्याम बैंक में मैनेजर।

वे कहते हैं, ‘पहले श्याम जी नहीं माने। हमारी सोसाइटी में लोग महिलाओं को राजनीति में लाने में झिझकते हैं, शायद वही झिझक उनके भीतर भी थी, लेकिन बाद में मान गए।’ इसके बाद मैडम चुनाव लड़ीं और जीत भी गईं।

ओडिशा सरकार में सांसद और पूर्व मंत्री कार्तिक मांझी और द्रौपदी मुर्मू, दोनों का जन्म मयूरभंज जिले के उपरबेड़ा गांव में हुआ था। कार्तिक मांझी ही वह शख्स हैं, जिन्होंने द्रौपदी का दाखिला भुवनेश्वर के आदिवासी आवासीय विद्यालय में करवाया था। द्रौपदी जिस बैकग्राउंड से आती हैं, वहां उस वक्त जन्म-जाति प्रमाण पत्र जैसे डॉक्यूमेंट बनवाना और फिर भुवनेश्वर जैसी बड़ी जगह में दाखिला पाना मुश्किल काम था।

मांझी की मदद से उनका दाखिला हो गया। पूर्व मंत्री कार्तिक मांझी और रविंद्र नाथ महतो के बीच अच्छे संबंध थे। द्रौपदी, दूर के रिस्ते में मांझी की भतीजी लगती थीं। भुवनेश्वर में जब महतो से मांझी ने द्रौपदी को मिलवाया तो उन दोनों का रिश्ता भी चाचा-भतीजी का बन गया।

द्रौपदी, चाचा मांझी से मिलने उनके घर आती-जातीं थीं। पॉलिटिकल कनेक्शन और मित्रता की वजह से रविंद्रनाथ का भी आना-जाना लगा रहता था। यहीं द्रौपदी और रविंद्रनाथ महतो का रिश्ता और गहरा होता गया। द्रौपदी, रविंद्रनाथ का सम्मान वैसे ही करती थीं, जैसे अपने मांझी चाचा का करती थीं। धीरे-धीरे वह महतो के परिवार की एक सदस्य जैसे ही हो गईं। शादी-ब्याह, दुख-सुख में द्रौपदी महतो के घर में वैसे ही शामिल होतीं जैसे घर की बेटी होती है।

रायरंगपुर के BJP कार्यालय में मौजूद लोगों ने बताया, ‘साल 2009 में द्रौपदी तीसरी बार विधायक पद के लिए चुनाव लड़ीं, लेकिन हार गईं। उधर रविंद्रनाथ जिला अध्यक्ष के रूप में दो कार्यकाल पूरा कर चुके थे। नियम के मुताबिक तीसरी बार उन्हें यह पद नहीं मिल सकता था।

द्रौपदी तब तक ओडिशा की राजनीति का चर्चित चेहरा बन चुकी थीं। द्रौपदी लोगों से मिलने-जुलने और उनके दुख दर्द बांटने में सबसे आगे रहती थीं। महतो चाहते थे कि द्रौपदी राजनीति में सक्रिय रहें। लिहाजा उन्होंने द्रौपदी को जिला अध्यक्ष बनवा दिया।

बिकास कहते हैं, ‘जब उनके दोनों बेटे खत्म हो गए, तो उन्होंने पिता जी से कहा- मैं राजनीति छोड़ना चाहती हूं। इसी वजह से मैं अपने बच्चों को समय नहीं दे पाई। उनका पालन-पोषण ठीक से नहीं कर पाई।’ पिता जी ने उनसे कहा- ‘दुर्घटना पर किसी का बस नहीं होता। तुम्हारा कोई दोष नहीं। नियति ने तुम्हें जिस काम के लिए चुना है, तुम्हें वो करना चाहिए।’

द्रौपदी की भाभी शाक्यमुनि कहती हैं, ‘जब बड़े बेटे की मौत हुई तो द्रौपदी 6 महीने तक डिप्रेशन से उबर नहीं पाईं थीं। उन्हें संभालना मुश्किल हो रहा था। तब उन्होंने अध्यात्म का सहारा लिया। शायद उसी ने उन्हें पहाड़ जैसे दुखों को सहने की शक्ति दी।’

वे कहती हैं, ‘जो द्रौपदी बड़े बेटे की मौत से टूट गई थी, उसी द्रौपदी ने छोटे बेटे की मौत की खबर फोन पर देते वक्त कहा- रोकर घर मत आना। जैसे सामान्य समय में घर में मेहमान आते हैं वैसे आना।’

द्रौपदी की भाभी शाक्यमुनि कहती हैं, ‘पिताजी यानी बिरंची नारायण टुडू को जब उनके प्रेम के बारे में पता चला तो वे द्रौपदी से गुस्सा हो गए। वे इस रिश्ते से खुश नहीं थे, लेकिन पहाड़पुर के श्याम भी ठानकर आए थे कि द्रौपदी से संबंध पक्का करके ही जाएंगे। उन्होंने अपने रिश्तेदारों के साथ तीन-चार दिन के लिए उपरवाड़ा गांव में डेरा डाल लिया था। उधर द्रौपदी ने भी मन बना लिया था कि शादी करूंगी तो उन्हीं से।’

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