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यूपी की सियासत में सुनील बंसल होने के मायने…

 उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव की घंटी बज चुकी है। 4 और 11 मई को वोटिंग और 13 मई को परिणाम आने हैं, लेकिन बीजेपी के सामने 2014, 2017, 2018, 2019 और 2022 जैसे परिणाम को दोहराने का संकल्प भी है और चुनौती भी। संकल्प एक बार फिर से निकाय चुनाव में बाज़ी मारने का और चुनौती चुनाव में अपने सबसे बड़े  रणनीतिकार के बिना उतरने की। जी हां, हम बात कर रहे हैं सुनील बंसल की।  एक ऐसे यूपी बीजेपी के चाणक्य की जिसने पर्दे के पीछे रह कर यूपी में ठोस रणनीति बना कर बीजेपी को शून्य से शिखर तक का सफर तय कराया। 2023 के निकाय चुनाव में बीजेपी पूरे दम-खम के साथ उतर रही है और पहले से निकाय चुनाव की सत्ता में काबिज़ बीजेपी के सामने 2018 की तरह चुनौतियां भी कम हैं. लेकिन प्रदेश के लाखों बीजेपी कार्यकर्तांओं का कहना है, कि सुनील बंसल मतलब नो टेंशन। पिछले आठ सालों में सुनील बंसल ने यूपी में ऐसे कार्यकर्ताओं को एकजुट किया जिनके बूते पार्टी 2014 से लेकर 2022 तक चुनाव दर चुनाव जीत दर्ज करती रही लेकिन चुंकि अब उनका प्रमोशन हो गया है औऱ वो बीजेपी के राष्ट्रीय महामंत्री और पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, तेलंगाना के प्रभारी हैं, तो बीजेपी को उनकी रणनीति के बिना ही यूपी के निकाय चुनाव 2023 में उतरना होगा।                                                                                                          

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